गीता पढो - आलस्य त्यज कर आत्म उन्नति

आलस्य त्यज कर आत्म उन्नति के लिये आगे बढो,
सुखशांति का भंडार तुम में है भरा, गीता पढो ।
 
भगवान के तुम अंश हो बतला रही गीता तुम्हें,
पर मोह निद्रा मग्न सोते, काल बहु बीता तुम्हें ।
 
तुम हो अजर, तुम हो अमर, मरने की झंझट छोड दो,
पाओगे अपना रूप जग का प्रेमबंधन तोड दो ।
 
जीस धाम सें नीचे गीरे, उसके लिये फिर से चढो,
होगा न फिर आवागमन, गीता पढो, गीता पढो ।
 
होगी शमन यह सर्वदा को जन्मबंधन की व्यथा,
करीये श्रवण गीता भारती, हरिहर कथित गीता कथा ।
 
जे ज्ञान गीता भारती, है जन्मबंधन टालती,
सब भक्त मिलकर प्रेम से उसकी उतारो आरती ।
 
गीता पढो, गीता पढो, गीता पढो, गीता पढो,
गीता पढो, गीता पढो, गीता पढो, गीता पढो ।